Sunday, May 16, 2010

HAM KYUN NAHI SAMJHE

हवाओं ने हमारा आँचल झाग्झोरा था, जुल्फें बिखेरी थीं, रोती सी आवाज़ में..
हमसे कुछ बोला था
हम क्यूँ नहीं समझे..कि क्या उनको कहना था

बिन मौसम बादल भी आए थे, गरजे थे हमपे, ओले भी बरसाए थे..
थर्राए थे, भरमाये थे
हम क्यूँ नहीं समझे..कि वो रोते रोते हमारी गली में क्यूँ आए थे

सूरज भी हद से ज़्यादा उबला था, जलाया था हमको, बुझाया था हमको..
बेचैन कर के छोड़ा था
हम क्यूँ नहीं समझे..कि उसने किस ओर हमको मोड़ा था

आधी रात कोयल भी आई थी, चीखी थी चिल्लाई थी, हमारे दिल को घबराई थी
रात भर चौंकायी थी
हम क्यूँ नहीं समझे..कि अपनी दर्द भरी भाषा में वो क्या हमको बतलाने आई थी

इन सब ने बतलाया था, हमारी ज़िन्दगी के खो जाने का संदेस सुनाया था,
तुम हमें छोड़ गए हो ये समझाया था
हम क्यूँ नहीं समझे..कि जीते-जी हमने अपनी जान को ही गवाया था

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