जाने कितने ही पीछे छूट गए
जाने कितने ही राहों में टूट गए
कुछ तो हम खुद ही छाँट आए
कुछ अपनों में बाँट आए
और कुछ कुछ संजोये बैठे हैं
कभी इन संजोये हुए लम्हों कि पोटली में झाकना
कभी आगे आने वाले लम्हों को ताकना
कहने को तो बरसों लम्बी है ज़िन्दगी
जीने को.. सिर्फ एक लम्हा
सोचो तो तनहा..
देखो तो महफ़िल..
चाहो तो मोहब्बत..
समझो तो पहेली..
जी लो तो.. जी लो तो ज़िंदगी!
लेकिन जीने को..सिर्फ एक लम्हा..

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