Friday, January 22, 2010

LAMHE bhar hai ZINDAGEE

लम्हों कि उस शाख पर जाने कितने लम्हे बिछे हैं
जाने कितने ही पीछे छूट गए
जाने कितने ही राहों में टूट गए
कुछ तो हम खुद ही छाँट आए
कुछ अपनों में बाँट आए
और कुछ कुछ संजोये बैठे हैं

कभी इन संजोये हुए लम्हों कि पोटली में झाकना
कभी आगे आने वाले लम्हों को ताकना
कहने को तो बरसों लम्बी है ज़िन्दगी
जीने को.. सिर्फ एक लम्हा

सोचो तो तनहा..
देखो तो महफ़िल..
चाहो तो मोहब्बत..
समझो तो पहेली..
जी लो तो.. जी लो तो ज़िंदगी!
लेकिन जीने को..सिर्फ एक लम्हा..


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