Saturday, March 12, 2011

MANMOHINI

चांदनी को पहने हुए,
वो सूरज का श्रींगार  करती है,
कुछ तो चन्दन उसकी खुशबू चुरा लेता है
और कुछ फूलों को वो उधार करती है

जब उस भूरी नीली नदिया में
वो अपना कोमल सा तन डुबोती है
ललचता हुआ सा चाँद
आसमान से उतरता है
डूब कर गहराईयों में तैरता हुआ
उसे छोने  गुज़रता है
अपने नर्म पाओं से उसे छेड़ती हुई
वो चाँद को अपनी चांदनी में भिगोती है   

प्यासा प्यासा सा मेघ 
चन्द्रमा से जलता है
उसके रूप की प्यास से मजबूर हो कर
अपनी दशा से चूर हो कर
खुद को खोने की राह में
उसके केवल एक स्पर्श की चाह में
टूट कर बरसता है
और उसके तन पर बूँदें बन कर,
टेहेलता हुआ,फिसलता हुआ,
उसके मन को छूने को तरसता है.

वो खेलती हुई इन बूंदों से
और चाँद को नदी में डूबा सा छोड़ कर
झम झम नाचती है बारिश में
और जाने कितने पौधे,
उसकी एक छुअन की ख्वाहिश में
झूमते हैं, झुकते हैं,

वो खनक कर खिलखिलाती है
अपनी मीठी किलकारियों से,
वो हवाओं को गुदगुदाती है
और कायनात का हर कतरा
केवल उसके एक एहसास की तलब में
बढ़ कर उन हवाओं को चूमता है,
और उसके नशे में झूमता है

और वो हर एक को बस छू कर गुज़र जाती है
हर के दील में बसती है लेकिन हाथ वो किसके आती है?
न करिश्मा है 
न माया
बस एक चमकती सी काया 
एक भोला सा चंचल मन 
और प्रेम की पूजा में अर्पित, एक निर्मल जीवन


न जीवन भर साथ निभाने वाली  अर्धांगिनी   
न जन्मो जन्मो संग रहने वाली संगीनी
बस पल भर को दिल लुभाने वाली,
लेकिन जीवन भर ख़्वाबों में आने वाली, मनमोहिनी.

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