अपने टूटे हुए आईने का दीदार करती हूँ,
आज, अपनी हार स्वीकार करती हूँकुछ पाने का जो वहेम हुआ था,
आज उस वहेम का बहिष्कार करती हूँ
खुद की हर बात पर गुरूर हुआ करता था,
आज उस गुरूर से इनकार करती हूँ
जिस दुश्मन से नज़रें मिला कर जंग का एलान किया था,
नज़रें झुका कर उस से अपनी शिकस्त का इकरार करती हूँजिन बाजुओं को थाम कर चली थी सफ़र तय करने,
सरेआम उनको आज खुद से बेज़ार करती हूँ
अपनी हर चाहत को लाचार करती हूँ,
आज, अपनी हार स्वीकार करती हूँ

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