Monday, February 28, 2011

KUCHH PANNE ADHOORE SE

अपने  जज़्बात  में  कुछ  अक्षर  लपेटती हुई ..
मैं  समेटे  जा   रही  थी  इन्हें  उन  पन्नो  में ..
देखा  कभी  खुद  पढ़  के  भी ..
खुद  ही  जाना  उस  दर्द  का  एहसास ..
सोचा  क्यूँ  कर  रही  हूँ   इन  पन्नो   को  बोझिल  अपने  ग़म  से ..
जो  पलटने  को  उठाया  उन्हें , कोई  वजन  तो था  ही  नहीं  उनमे ..

तो  समझ  गयी  की  इतने  रोज़  मेरे जज़्बात   खाली  जाते  रहे ..
इन  फ़िज़ूल  लफ़्ज़ों  में , बिन  भाषा  के  गूंजते  हुए ..
इन  पन्नो  से  मैं  बाँटती   रही ..
अपने  दर्द  को  दो  हिस्सों  में  काटती  रही ..
और  दोनों  ही  हिस्से  मेरे ..
पन्नों  को  ना  ही  दिल  है , न  जज़्बात   ..
हाँ  बस  जब  देखती  हूँ  उन्हें , वो  भुलाया  हुआ  दर्द  भी  आजाता  है  याद ..

तो  क्या  हासिल  है  मुझे  लिख  के  भी ..
लिखना  छोड़  दिया  है  अब  ..
उन  पन्नो  को  मोड़  दिया  है  अब ..
खामोश  चलती  जा  रही  हूँ ..
अपने  डेढ़  ग्राम  दर्द  की पोटली  उठाये हुए ..
एक  मैं  खुद , आधा  उन  पन्नो  में  कैद ..
वो कुछ  पन्ने  अधूरे  से ..

Saturday, February 5, 2011

AAJ APNI HAAR SWEEKAAR KARTI HOON

अपने टूटे हुए आईने का दीदार करती हूँ,
आज, अपनी हार स्वीकार करती हूँ

कुछ पाने का जो वहेम हुआ था,
आज उस वहेम का बहिष्कार करती हूँ

खुद की हर बात पर गुरूर  हुआ करता था,
आज उस गुरूर से इनकार करती हूँ

जिस दुश्मन से नज़रें मिला कर जंग का एलान किया था,
नज़रें झुका कर उस से अपनी शिकस्त का इकरार करती हूँ

जिन बाजुओं को थाम कर चली थी सफ़र तय करने,
सरेआम उनको आज खुद से बेज़ार करती हूँ

अपनी हर चाहत को लाचार करती हूँ,
आज, अपनी हार स्वीकार करती हूँ